लुटेरों का टीला गाँव से बाहर एक छोटी सी पहाड़ी पर काली देवी का एक मंदिर था । आसपास के इलाके मेँ उसकी काफी मान्यता थी लेकिन स्थानीय मान्यता और परंपरा के अनुसार वहाँ सिर्फ खास उद्देश्य से ही जाते थे जैसे कोई मान्यता पूरी होने पर देवी की विशेष पूजा और धन्यबाद करने हेतु । वो भी शुक्रवार को । बाकी दिन वहाँ सुनसान और शांति पसरी रहती । नवरात्री के नौ दिनों मेँ जरूर प्रतिदिन बड़ी संख्या मेँ लोग देवी दर्शन और पूजा के लिए पहुँचते और हर समय हलचल बनी रहती ।
उस दिन शुक्रवार नहीं था । नवरात्री अभी दूर थीं । गोधूलि वेला में मंदिर की सीडियों पर एक साँवली तीखे नाकनक्श और बड़ी बड़ी आँखों वाली लम्बी और छरहरी लड़की बैठी थी । उसके काले घने और लंबे बालों की वेणी एक कंधे से होती हुई सामने लटकी हुई थी । ये पार्वती थी । उसे कैलाश का इंतजार था उसकी निगाहें जमीन से पहाड़ी के ऊपर तक आने वाली सीडियों पर थीं । तभी कैलाश ने पीछे से आकार उसे चौंका दिया । वह सीडियों के रास्ते से न आकर पीछे से चढ़ाई चढ़ता हुआ आया था ।
आते ही पार्वती ने उलाहना दिया
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